हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी साफ़-सुथरे हाथों से न्यायालय नहीं आई। उसने शुरू में बेरोजगार और अनपढ़ होने का दावा किया जबकि असल रिकॉर्ड से पता चलता है कि वह पोस्ट ग्रेजुएट है और सीनियर सेल्स कोऑर्डिनेटर के तौर पर काम कर रही है। याचिका में गौतम बुद्ध नगर के प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें उसे पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। याची का कहना था कि पत्नी ने फैमिली कोर्ट में साफतौर पर बेरोजगार होने का दावा किया। हालांकि सबूतों से पता चलता है कि वह पोस्ट ग्रेजुएट व वेब डिजाइनर है और उसे हर महीने 36 हजार रुपये तनख्वाह मिल रही है।
उसका कहना था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को भरण पोषण तभी दिया जा सकता है, जब वह अपना गुज़ारा करने में असमर्थ हो लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं था। कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को गुजारा भत्ता तब दिया जा सकता है, जब वह अपना गुज़ारा करने में असमर्थ हो।

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